Sunday 18 March 2018

सरकारी नौकरी हेतु अनिवार्य सैन्य सेवा की विधिमान्यता


रक्षामंत्रालय से सम्बंधित संसद की स्थायी समिति ने सिफारिश की हैकि ऐसे लोग जो सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं, उनके लिए पांच साल की सैन्य सेवा अनिवार्य की जाये. समिति की अनुशंसा है कि केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा नयी भर्ती में यह नियम लागू किया जाये. समिति ने थल,जल तथा वायु सेना में योग्य अधिकारियों तथा कर्मकारों की भरी कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए आशा व्यक्त की है कि ऐसा करने पर न केवल सेना में मानव संसाधन की संख्या बढ़ेगी वरन सिविल सेवाओं में देश प्रेम , अनुशासन  तथा समर्पण का भाव जाग्रत होगा तथा प्रशासनिक अधिकारी बिना किसी डर या दबाव के काम करने को उद्द्यत होंगे. सेना  की दुर्गम सेवाओं का एहसास होगा तथा सैनकों के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी. अभी तक सिविल सेवाओं के लिए ऐसी कोई शर्त तो नहीं है लेकिन शार्ट सर्विस कमीशन पाए तथा भूतपूर्व सैनिकों/पाल्यों के लिए एक सीमित प्रतिशत तक स्थान आरक्षित हैं.


मक्सिको समेत कई देशों में 18 से 26 वर्ष की आयु के पुरुषों/महिलाओं को अनिवार्य सैन्य सेवा देनी होती है.अन्यान्य देशों में इनको पंजीकरण कराना होता है,20 दिन से लेकर तीन वर्ष की ट्रेनिंग लेनी पड़ती है तथा आवश्यकता/आपातकाल में सैन्य सेवा करनी होती है.कुछ अन्य देशों में ऐसी सेवा अनिवार्य तो नहीं है लेकिन एक आकर्षक विकल्प के रूप में स्थापित है.

संयुक्त राज्य अमेरिका में गृहयुद्ध (१८६३)के समय सैन्य सेवा अनिवार्य की गयी थी लेकिन तीन सौ डालर जुर्माना देकर कोई अपनी जगह प्रतिस्थानी दे सकता था.इस छूट का दुरुपयोग करते हुए कईयों ने अपनी जगह अपराधियों तथा विकलांगों को भरती करा दिया.प्रथम विश्व युद्ध (१९१७), कोरियाई तथा विएतनाम युद्ध के समय जबरदस्ती भरती की प्रक्रिया पुनः अपनाई गयी.जिमी कार्टर के राष्ट्रपतित्व काल (१९७९) में कानून पारित 26 वर्ष की आयु तक के लोगों के लिए भरती पंजीकरण अनिवार्य कियागया जिससे सेना को आपातकाल में मानव संसाधन उपलब्ध रहे.पंजीकरण न कराने पर जुर्माने की व्यवस्था है लेकिन हाल के वर्षों में किसीको दोषी करार नहीँ कियागया है. पंजीकृत व्यक्तियों को फेडरल तथा स्टेट विश्वविद्यालयों में शुल्कों में छूट होती है , ड्राइविंग लाइसेंस आसानी से बनते हैं तथा ऐसी ही अनेक अन्य सुविधाएँ दी जाती हैं.जो लोग मिलिट्री सर्विस के बाद स्वर्गवासी होते हैं उनके शव नेशनल सिमिट्री में दफनाये जाते हैं और यह अत्यंत सम्मान का  प्रतीक माना जाता है.


दूसरी तरफ चीन ,जिसे कि विश्व की सेनाओं में सर्वाधिक संख्याबल वाला बतलाया जाता है, में यों तो सार्वभौमिक सैन्य सेवा अनिवार्य है लेकिन यह केवल सिद्धांत में है तथा अत्यधिक जनसँख्या होने के कारण इच्छुक लोगों को भी सेवारत नहीं किया जा पाता.


भारत में सैन्य सेवा अनिवार्य नहीं है लेकिन इसको एक अच्छे वैकल्पिक कैरियर के रूप में जाना/प्रचारित किया जाता है. मौलिक अधिकारों के भाग 3 में अनुच्छेद 23शोषण के विरुद्ध अधिकार देता हैं तथा दुर्व्यापार, बेगार और सभी प्रकार के बलात श्रम को प्रतिषिद्ध करता है लेकिन इस अनुच्छेद में ऐसी परिस्थितियों पर ध्यान दिया गया है जिनमे राज्य को लोक नियोजन के लिए अनिवार्य सेवा लेनी पड़ेगी.

देश की रक्षा के लिए सेना में अनिवार्य भर्ती या कठिन परिस्थितियों में पुलिस की सहायता करने का आदेश देना बलात श्रम नहीं है क्योंकि वह अनु०23 (2) के अधीन अनुज्ञेय है. यह भी प्रावधानित है ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म,मूलवंश,जाति या वर्ग या इनमे से किसीके आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा.अनुच्छेद 33, सशस्त्र  बलों के सदस्यों तथा उनके अनुषंगी संगठनो को मौलिक अधिकारों में कमी करने की शक्ति संसद को प्रदान करता है.भारत संघ बनाम एल.डी.बालम सिंह (2002)के वाद में सुप्रीमकोर्ट ने अभिनिर्धारित किया है कि अनु० 33 मूल अधिकारों का अपवाद है. कार्य पालिका के कुछ अंग ऐसे हैं जहाँ स्वतंत्रता को नियंत्रित करना आवश्यक है. सैन्यबल,पुलिस,आसूचना (इंटेलिजेंस)अभिकरण ऐसे ही संगठन हैं जहाँ स्वतंत्रता को सीमित करना आवश्यक है . यह अनुच्छेद संसद को यह शक्ति देता हैकि वह विधि बनाकर यह सीमा तय करे जिसके भीतर अनु० 33 में विनिर्दिष्ट संगठनों के सदस्यों को मूल अधिकार उपलब्ध होंगे.
सेना अधिनियम,नौसेना अधिनियम , वायुसेना अधिनियम,सीमा सुरक्षा बल अधिनियम और इसी प्रकार के अन्य अधिनियम अनु० 19(1)(ग) के अधीन संगम के अधिकार को सीमित करते हैं.पुलिस बल (अधिकारों का निर्बन्धन) अधिनियम १९६६ में यह घोषित किया गया है कि पुलिस बल का कोई सदस्य किसी व्यवसाय संघ या श्रमिक संघ या राजनैतिक संगम कासदस्य नहीं हो सकता.बताया जाता हैकि १९७३ में उ०प्र० में पी.ए.सी.के जवानों ने अपना संघ बनाने की मांग को लेकर आन्दोलन किया था जिसे सख्ती से कुचल दिया गया था. इसी कारण विश्वविद्यालय में भीषण आगजनी हुई थी.


अनु० 34 ऐसी परिस्थिति अनुध्यात करता है जहाँ देश के किसी भाग में सेना विधि( मार्शल लॉ) घोषित की गयी हो . यदि सेना विधि के दौरान व्यवस्था बनाये रखने में कोई अवैध बात की गयी है तो संसद को यह शक्ति दी गयी हैकि वह क्षतिपूर्ति अधिनियम पारित कर सकेगी. सेना विधि ,अनु० 352 के अधीन की गयी उद्घोषणा से भिन्न है.


संविधान के भाग 4क में वर्णित मूल कर्तव्यों में जहाँ प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य बतलाया गया है कि संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों , संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे,भारत की प्रभुता ,एकता और अखंडता की रक्षा करे तथा यह भी स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि "देश की रक्षा करे तथा आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करे".

"जननी जन्म भूमिश्च , स्वर्गादपि च गरीयसी" को हृदयंगम  करने वाली भारतीय मनीषा में सैन्य सेवा मात्र कैरियर नहीं बल्कि जीवन को सफल बनाने का एक साधन है.भारतीय सेनाएं शौर्य और वीरता का प्रतिमान हैं.हमारे यहाँ मद्रास,पंजाब,राजपुताना,नगा,डोगरा,जाट, सिख, कुमांऊतथा गढ़वाल रायफल्स ऐसी रेजिमेंट हैं जो साहस,कर्तव्य निष्ठा और दिलेरी के लिए विश्व विख्यात हैं.इनमे विशेष बात यह भी है कि कई परिवार और खानदान पुश्तों दर पुश्तों से अपने पुत्रों को सेना में भरती कराकर गर्व का अनुभव करते हैं.


सैन्य शिक्षा देने के लिए सैनिक स्कूलों के साथ-साथ राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज ,नेशनल डिफेन्स अकादमी , कॉलेज ऑफ़ डिफेन्स मैनेजमेंट, डिफेन्स सर्विसेस स्टाफ कॉलेज ऐसे प्रख्यात संस्थाओं के अलावा गुडगाँव में इंडियन नेशनल डिफेन्स यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी है जो सेना पाठ्यक्रम से सम्बंधित यू0जी० /पी० जी० तथा रिसर्च कार्यक्रम चलायेगी , सन १९६२ के चीन युद्ध के बाद देश की सुरक्षा व्यवस्था को चाक चौबंद करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई थी.उसी के अंतर्गत दसवीं के बाद एन.सी.सी. की ट्रेनिंग लागूं की गयी थी जिसमे थल,नभ तथा नौ सेना का प्रारंभिक सैद्धांतिक तथा प्रायोगिक ज्ञान दिया जाता है.एन.सी.सी. का " बी" और  " सी" प्रमाण पत्र धारकों को सेना तथा अन्य सेवाओं एवं इंजीनियरिंग/मेडिकल समेत विश्वविद्यालयी पाठ्य क्रमों में प्रवेश में वरीयता /वेटज दिया जाता है.सैन्य सेवा की शर्तें आकर्षक बनाई गयीं हैं जिससे नवयुवक/युवतियां इसमें शामिल हों.हाल में महिलाओं को भी स्थाई कमीशन दिया जाना अनुमन्य हुआ है. अब तो फाइटर प्लेन चलाने के लिए भी महिलायें चयनित हो चुकी हैं.

 
इधर हाल के वर्षों में सेना के तीनो अंग मानव संसाधन की कमी से जूझ रहे हैं.थल सेना से इस्तीफा देकर प्राइवेट सिक्यूरिटी एजेंसी चला रहे हैं तो नभ सेना से अलग हो कर प्राइवेट प्लेन चला रहे हैं.लोग अपने पाल्यों को उच्च शिक्षा दिलाकर मल्टीनेशनल कंपनियों,कार्पोरेशनों तथा कई बार विदेश में नौकरी कराने के लिए उद्द्यत हो रहे हैं.जनसँख्या नियंत्रण कार्यक्रम अपनाने के कारण एक-दो बच्चे हैं अतः उन्हें सेना की जोखिम भरी सेवा से विरत रखते हैं.उधर सिविल सेवाओं में अनुशासन ,उत्तरदायित्व तथा जवाबदेही में कमी आने से स्तरहीनता दिखलाई पड़ रही है.इन्ही सब कारणों से संसदीय समिति ने उक्त सिफारिश की है.
एक जनतांत्रिक देश में सैन्य तथा सिविल सेवाएँ अलग-अलग हैं तथा सामान्यतः सेना को नागरिक सेवाओं से दूर रखना ही बेहतर होता है.अत्यंत आपात स्थिति में ही सेना की सहायता ली जानी चाहिए.इससे सेना तथा नागरिक प्रशासन में सामंजस्य रहेगा तथा दोनों का मनोबल ऊँचा रहेगा.संविधान निर्माताओं ने इस बात का विशेष ध्यान रखा था. संविधान ने कार्यपालिका की शक्ति राष्ट्रपति में निहित करते हुए संघ के रक्षाबलों का सर्वोच्च समादेश भी निहित किया है लेकिन इसका प्रयोग विधि द्वारा नियमित किया है.देश में सेना ही सत्ता पर काबिज़ न हो जाये, इसके लिए भी पर्याप्त रक्षोपाय किये गए हैं.


काम का अधिकार मूल अधिकार न होकर राज्य के नीति निदेशकों का ही हिस्सा हैं जिसमे समान कार्य के लिए सामान वेतन के साथ पुरुष और स्त्री , सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त कराने का समादेश है.संसद तथा राज्य   विधान मंडल विधि बना कर  सरकारी सेवाओं में भरती के लिए पांच साल की अनिवार्य सैन्य सेवा का प्रावधान कर सकते हैं.मेडिकल में प्रवेश के लिए गाँव में पांच वर्ष तक अनिवार्य सेवा की शर्तें विधिमान्य हैं.यहाँ यह उल्लेख करना समीचीन हैकि एक बार सेना की सेवा करने के बाद उस व्यक्ति पर सेना का अनुशासन हावी रहेगा जो समय के साथ गहराता जायेगा.सेना-सिविलियंस का गठजोड़ प्रजातान्त्रिक मूल्यों,और प्रतिबद्धताओं पर भारी  पड़ सकता है.

एक बात और है. अभी सेना में किसी प्रकार का आरक्षण नहीं है जबकि सरकारी नौकरियों में यह पचास प्रतिशत तक है.अनिवार्य सैन्य सेवा की शर्त अधिरोपित करने से संविधान की उद्देशिका में वर्णित सामजिक न्याय पाने के लिए भी नये प्रतिमान निश्चित करने होंगे.संसदीय समिति की सिफारिशें स्वागत योग्य हैं लेकिन गहन विचार -विमर्श के उपरान्त ही इस पर अमल अपेक्षित है.





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