Friday, 16 March 2018

राज्य- ध्वज की मांग अनुचित,अनैतिक ही नहीं देश की अखंडता पर आंच हैं




कर्णाटक के मुख्य मंत्री ने केंद्र सरकार के पास अपने राज्य के लिए अलग ध्वज को मान्यता देने की मांग भेजी है. यह ध्वज पीले, लाल और श्वेत पट्टियों का है जिसमे राज्य के प्रतीक चिह्न को मध्य में उकेरा गया है. कन्नड़ अस्मिता के प्रतीक "गंडा भेरुन्दी" ( दो सिरों वाली मिथकीय मछली ) का यह चिह्न हिंदी को तथाकथित जबरन लादे जाने के विरोध में वर्षों से आन्दोलन के रूप में प्रदर्शित किया जाता रहा है. कतिपय राजनैतिक दलों ने श्वेत पट्टिका हटाने तथा पीली-लाल पट्टियों को ही राज्य ध्वज के रूप में स्वीकार किया है. केंद्र सरकार ने ऐसी मांग पर नकारात्मक रुख दिखलाया है , लेकिन वहां आसन्न  विधान सभा चुनाव के माहौल में यह क्या गुल खिलायेगा ,यह भविष्य ही बतलायेगा. कावेरी नदी के जल बटवारे पर तमिलनाडु के साथ विवाद में होने वाले आन्दोलन में यही  ध्वज लहराया जाता है.


वर्तमान में जम्मू-कश्मीर छोड़ कर किसी भी राज्य का अलग ध्वज नहीं है.ज्ञातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 370 के कारण वहां का संविधान ही अलग है तथा देश के अधिकांश क़ानून वहां के विधान मंडल द्वारा पारित होने के बाद ही लागू हैं.वहां के संविधान पर अंतिम निर्णय राष्ट्रपति की सहमति से ही होता है.


सन १९६९ में करूणानिधि के नेतृत्व वाली द्रमुक नें भी अलग झण्डे का प्रारूप प्रस्तुत किया था जिसमें ऊपर बांये किनारे पर भारत का राष्ट्रीय ध्वज अंकित था. तत्समय राष्ट्रपति,राज्यपालों के  तथा कई अलग -अलग ध्वज प्रचलित थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने न केवल अलग ध्वज की मांग को कठोरता से ठुकरा दिया था बल्कि सेना के रेजीमेंटों को छोड़कर विभिन्न झण्डों का अस्तित्व समाप्त कर केवल तिरंगे को ही मान्यता दी थी.उसके बाद से अब विभिन्न सरकारी इमारतों, राष्ट्रपति भवन तथा राजभवनों आदि पर केवल तिरंगा ही फहराया जाता है.खालिस्तान, गोरखालैंड, बोडोलैंड वगैरह अलगाव वादी आन्दोलनकारियों ने अपने-अपने ध्वज घोषित कर रखे हैं तथा गाहे-बगाहे समाचार-पत्रों तथा मीडिया में नज़र आते हैं . यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि राज्यों ने अपने-अपने प्रतीक चिह्न बना रखें हैं लेकिन सरकारी पत्रों आदि में "भारत सरकार की सेवा में" ही अंकित किया जाता है .सरकारी पोस्टेज स्टैम्प केंद्र तथा राज्यों के लिए समान हैं. कुछ वर्ष पूर्व तक रसीदी टिकटों पर सम्बंधित राज्य का नाम छपा होता था लेकिन अब ऐसा नहीं है.


भारत के संविधान का पहला अनुच्छेद भारत को राज्यों का संघ होना उद्घोषित करता है तथा नये राज्यों का प्रवेश या स्थापना , नये राज्यों के निर्माण तथा वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों , सीमाओं या नाम में परिवर्तन के लिए राष्ट्रपति की पूर्व सिफारिश पर कानून बनाकर लागू करने के लिए संसद को अधिकृत करता है.संविधान की पहली अनुसूची में राज्य तथा केंद्र शासित राज्य क्षेत्र वर्णित हैं तथा संसद साधारण बहुमत से इनमे कोई परिवर्तन करने के लिए स्वतंत्र है.भारतीय संविधान में यों तो एक परिसंघ संविधान के बहुत सारे लक्षण विद्यमान हैं तथा एस.आर.बोम्मई बनाम भारत संघ (१९९४ )के वाद में सुप्रीमकोर्ट ने परिसंघवाद को एक आधारिक लक्षण भी घोषित किया है लेकिन यह आदर्श परिसंघ माने जाने वाले अमेरिकी संविधान से इस मामले में फर्क है कि वहां तत्समय 13 विभिन्न देशों ने अपनी सुरक्षा अक्षुण रखने तथा कुछ अन्य अत्यंत सीमित विषयों पर कानून बनाने के लिए संविधान का निर्माण किया था .वहां राज्यों के अलग संविधान , झण्डे,राज्यगान, नागरिकता तथा कानून हैं.वहां केंद्र तथा राज्यों की कार्यपालिका तथा विधायिका ही नहीं न्यायपालिका भी अलग-अलग हैं.यह दूसरी बात है कि समय के साथ वहां केन्द्रीयकरण की प्रवृत्ति  आकार ले चुकी है तथा वहां के लोग अपने को संयुक्त राज्य का नागरिक बतलाने में अधिक गर्व महसूस करते हैं.


भारतीय संविधान केंद्र , राज्यों तथा केंद्र शासित क्षेत्रों के लिए प्रावधान करता है लेकिन यहाँ एकल नागरिकता है,राज्यपालों की नियुक्ति होती है तथा सिंगिल न्यायपालिका है जो संविधान तथा अन्य कानूनों का अर्थान्वयन करती है.भारत में एक राष्ट्र ध्वज, जो केसरिया,श्वेत तथा हरी पट्टियों का है तथा बीच में सारनाथ स्तूप का धर्म चक्र अंकित है जिसमे चौबीस तीलियाँ हैं . राष्ट्र ध्वज को फहराने/उतारने आदि को नियमित करने के लिए भारतीय ध्वज संहिता (२००२) है तथा इसके दुरुपयोग को रोकने/दण्डित  करने के लिए प्रतीक और नाम (अनुचित  प्रयोग निवारण ) अधिनियम ,1950 तथा राष्ट्रीय सम्मान (अपमान की रोकथाम) अधिनियम ,१९७१  क़ानून लागू हैं.संविधान में उल्लिखित मौलिक दायित्यों के अनुच्छेद 51 (क)में संविधान का पालन करने और उसके आदर्शों ; संस्थाओं; राष्ट्रध्वज और राष्ट्र गान का आदर करने का नागरिकों का पुनीत दायित्व बतलाया गया है.


राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भारत के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है.इस पर सभी को दिल से गर्व है और इसकी आन-बान-शान के लिए प्रत्येक देशवासी अपना सर्वस्व न्योच्छावर करने के लिए प्राणप्रण से तैयार रहता है. यह हमारी आशाओं तथा आकाक्षाओं का प्रतिबिम्ब है. भारत संघ बनाम नवीन जिंदल (2004) के वाद में सुप्रीमकोर्ट ने घोषणा की थी कि तिरंगे को फहराने का हर भारतीय को मौलिक अधिकार है.हालाँकि कई बार अति उत्साह में झण्डे के प्रयोग को लेकर दुश्वारियां भी आई हैं. १९९४ में मिस यूनिवर्स  बनी सुष्मिता सेन की बग्गी के पिछले हिस्से में तिरंगे को बांधने पर विवाद हुआ था, 2001 में मंदिरा बेदी द्वारा  तिरंगे बार्डर वाली साड़ी का प्रयोग करने तथा उसी वर्ष सचिन तेंदुलकर द्वारा  तिरंगे वाला केक काट   कर  आलोचना का शिकार हुए थे . कई फिल्मों में राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान के प्रतिषिद्ध उपयोग पर भी लोगों की भृकुटियाँ तनी हैं. अंतर्राष्ट्रीय मैचों तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में हम अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए तिरंगे को लहराकर आनंदित होते हैं.


संविधान में राज्यों को अपना अलग ध्वज रखने/बनाने की अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं है.राज्यों का सृजन प्रशासकीय कारणों से हुआ है तथा अनुच्छेद 355 के अनुसार संघ का यह कर्तव्य है कि वाह्य आक्रमण और आतंरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे.अनुच्छेद 256 से 263 तक के अनुच्छेदों में सामान्य स्थितियों में संघ को राज्य पर नियंत्रण के विभिन्न अधिकार उल्लिखित हैं जिसमे संसद द्वारा बनायी  गयी विधियों का अनुपालन सुनिश्चित कराना, राज्य की कार्य पालिका शक्ति को संघ की तत्विश्यक शक्ति में अड़चन न बनने देना,राष्ट्रीय और जलमार्ग सहित राष्ट्रीय महत्व के संचार साधनों की देख रेख तथा रेलों का संरक्षण करना इत्यादि शामिल है.अनुच्छेद 285 से 289में अंतर शासन- कर मुक्ति के प्रावधान करता है जिसके अंतर्गत संघ या राज्य आपस में एक-दूसरें के विरुद्ध करारोपण नहीं करेंगे. इन प्रावधानों से स्पष्ट है कि संविधान राज्यों को अलग इकाई के तौर पर नहीं देखता है -उनमे सहकारिता का भाव है-स्पर्धा का नहीं. राज्य केंद्र के अभिकर्ता या उपकरण नहीं हैं तथा शक्तिशाली केंद्र की तरह शक्तिशाली राज्य भी आज की आवश्यकता हैं. ऐसी मांगों से क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ भले ही सिद्ध हो जाएँ, देश में अलगाववाद का बीजारोपण होगा जो देश की अखंडता के लिए खतरा बन सकता है.परिसंघ हमारी राजव्यवस्था में विद्यमान है और हमें उसकी जीवंत उर्जा का अनुभव होता है 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अनुच्छेद 1(1 ) में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है. इसे सोंच समझ कर संघ कहा गया है , परिसंघ नहीं.प्रारूपण समिति यह स्पष्ट कर देना चाहती थी कि यद्यपि भारत एक परिसंघ है, यह परिसंघ राज्यों के साथ करार का परिणाम नहीं है. राज्यों को विलग होने का अधिकार नहीं है.वे संघ से अलग नहीं हो सकते. परिसंघ नष्ट नहीं किया जा सकता है. इसीलिये वह संघ है. प्रशासन की सुविधा के लिए देश को विभिन्न राज्यों में बांटा जा सकता है किन्तु देश एक अखंड और अविभाज्य इकाई है .कर्णाटक के मुख्यमंत्री की अलग झण्डे की मांग आज भले ही निश्छल लगे लेकिन यह ऐसा पैंडोरा बाक्स साबित हो  सकता है जिसके खुलते ही राष्ट्र घाती शक्तियां सर उठाने लगेंगी .यह अनुचित , अनैतिक और संविधान के शब्दों और भावों के विरुद्ध है. इससे देश की अखंडता पर आंच आ सकती है.



केंद्र सरकार को समय रहते इसे सख्ती से दबाना चाहिए तथा संविधान के उपलब्ध प्रावधानों में प्रशासकीय आदेश निर्गत करने चाहिए जिससे भविष्य में भी ऐसी मांगे न उठें.

2 comments:

  1. इस आलेख की सोच अधिनायकवादी है। बारत के संविधान में संघीय सिद्धान्त को स्थान दिया गाय है। हर राज्य संषीय झंडे के अलावा अपना अलग झंडा भी रख सकता है। इस से संघ की एकता मजबूत होती है कमजोर नहीं। वस्तुतः इस आलेख का विचार यही है कि केवल एक केंद्रीय सत्ता होनी चाहिए। राज्य तो मुगल सल्तनत की तरह केवल सूबे होने चाहिए।

    ReplyDelete
  2. आपकी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद.सामान्यतः एक खुले जनतंत्र में अपना अलग झंडा फहराने में कोई हानि नहीं है,लेकिन पहले दक्षिणी भाग में, फिर पंजाब में और फिर गोरखालैंड,बोडोलैंड तथा पूर्वोत्तर भारत में जो गतिविधियाँ हो रही हैं उनसे देश के टूटने का खतरा है. कर्णाटक की मांग अभी निश्छल लग रही है लेकिन भविष्य में येही देश तोड़ने का आधार बन सकती है.हो सकता है की हमारी सोच से आप सहमत न हों लेकिन ऐसी सोच आधारहीन नहीं कही जा सकती.

    ReplyDelete