Thursday 16 October 2014

अपराधन्याय शास्त्र और खड़ाऊँ परिक्रमा


तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के अंतर्गत अपराधी घोषित हुईं और उन्हें चार साल की जेल हो गयी। तुरंत जेल भेज दी गयी।  विधायकी और मुख्यमंत्री पद स्वतः मिटटी में मिल गया। बिना विधायक दल की मीटिंग बुलाये अपने एक विश्वासपात्र को मुख्यमंत्री बना दिया और गवर्नर ने दूसरे दिन उन्हें शपथ दिला दी। उन्होंने रुंधे गले से शपथ ली और राजभवन से खड़ाऊँ लेने कर्नाटक की जेल पहुँच गए।  पता नहीं मालकिन को अंदर से कितना अच्छा लगा लेकिन अखबार में नसीहत छपी की एडमिनिस्ट्रेशन ज्यादा इम्पोर्टेन्ट है इसलिए चेन्नई में ही रहे। वनबास और खड़ाऊं राज्य कलियुग में प्रस्थापित हो गया।

  अपराधन्याय  शास्त्र का पहला नियम है कि कोई भी अपराध राज्य के विरुद्ध माना जाता है। इसलिए सरकारी वकील को अदालत के सामने पूरी तौर पर सिद्ध करना होता है कि दंड संहिता में वर्णित अपराध कारित किया गया है और इसी अपराधी ने वह कृत्य किया है। दंड शास्त्र में जेल भेजने के पीछे आशय होता है कि उसे प्रायश्चित करने का अवसर दिया जाये तथा सामाजिकता से अलग - थलग किया जाये।  अपराधी को फिर से सामान्य जीवन जीने के लिए सक्षम बनाना भी एक उद्देश्य है।  कुछ वर्षों के बाद पुनः चुनाव लड़ा जा सकता है।

 लेकिन जिस तरह खड़ाऊं परिक्रमा की जा रही है उससे कई प्रश्न उत्तर मांग रहे हैं।  वर्तमान मुख्यमंत्री  जिस प्रकार चरण वंदना कर रहे हैं वह अपराध को बढ़ावा देने वाला साबित हो रहा है। ऐसे में आर्टिकल ३५६ के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन लगाया जाना चाहिए।  एस आर बोम्मई के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने  विवादित ढांचे में सरकारी पक्ष के विधायकों के शामिल होने को अपराध माना था तथा इस कारण ३५६ लगाने को औचित्य पूर्ण करार दिया था। एक राज्य का शासन जेल से  चले यह दुर्भाग्य पूर्ण ही नहीं बल्कि अनैतिक , असंवैधानिक तथा अवैध है। यह क़ानून का शासन नहीं बल्कि स्वेच्छाचारी का शासन है।