Sunday 27 October 2013

वकीलों को शारीरिक सौष्ठव की शिक्षा

  समाचार आया है कि बड़े व्यापारिक घराने अब सिर्फ नामी - गरामी  वकीलों के सहारे ही नहीं रहेंगे बल्कि अपने यहाँ नवागत वकीलों को नियुक्त करेंगे।  यह नवागंतुक  अनुबंधों को लिखने का काम करेंगे , ज़रूरत पड़ने पर केस लड़ेंगे तथा अधिक धनराशि वाले मामलों में सीनियर वकीलों को ब्रीफ करेंगे। यही नहीं अब यह लोग रक़म वसूली के लिए भी लगाये जायेंगे।                                       
विश्व व्यापारिक संगठन का सदस्य बनने तथा वैश्वीकरण और उदारीकरण नीतियां अपनाने के बाद व्यापार का दायरा काफी बढ  गया है। संसार के किसी भी देश से संपर्क हो सकता है तथा माल खरीदने या सेवाओं को पाने के लिए  इन्टरनेट आदि की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।  माल में त्रुटि तथा सेवाओं में कमी के कानूनों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य  में व्याख्यायित किया जारहा है। ऐसे में मुकदमों का बढ़ना लाजिमी है।  उपभोक्ता संरक्षण कानूनों के अंतर्गत असंख्य वाद दायर किये जा रहे हैं।  चूँकि प्रोडक्ट लायबिलिटी का सिद्धांत लागू है अतः उत्तरदायित्व माल बनाने वाले या सेवा प्रदान करने वाले का हो जाता है और अंत में  निर्माता को मुकदमा लड़ना पड़ता है।  छोटी धनराशि के वादों में भी सीनियर एडवोकेटस को एंगेज करने पर मोटी फीस चुकता करनी पड़ती है।  अतः अब नए वकीलों से काम लेने पर विचार किया जा रहा है।  इन वकीलों से यह भी अपेक्षा की जाएगी क़ि वे केवल केस की पैरवी तक सीमित न  रहें बल्कि पैसा वसूलने में भी सहयोग करें।              

 कुछ समय पूर्व बैंकों के रिकवरी एजेंटों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।  बैंक से लोन लेकर कार-मकान आदि खरीदने वालों द्वारा डिफ़ॉल्ट करने पर ऐसे एजेंटों द्वारा डरा-धमका कर पैसा वसूलने के मामलों को कोर्ट ने गंभीरता से लिया था ,और बैंकों को कड़ी फटकार लगाई थी।                                                                      

 आजकल विज्ञापनों में क्रेडिट कार्ड के ज़रिये ई ऍम आई के आधार पर खरीदारी के लिए प्रेरित किया जा रहा है। कई ऐसे लोग भी झांसे में आकर सामान खरीद लेतें हैं जो बाद में  भुगतान  नहीं कर पाते.. इन सबसे निपटने के लिए अब जूनियर  वकीलों को लगाने की पहल की जा रही है।            

                
 अधिवक्ता न्यायालय का अधिकारी होता है।  उससे आशा की जाती है कि वह न्यायिक कार्यों में  न्यायालय  की सहायता करेगा। पता नहीं इस पर बार कौंसिल कैसे प्रतिक्रिया करेगी। लेकिन अब वकालत पढ रहे छात्रों  को केवल कानूनों का ज्ञान देना ही पर्याप्त नहीं होगा बल्कि उनको शारीरिक सौष्ठव विकसित करने की भी ट्रेनिंग देनी होगी। बाजारी रण नीति के तहत सांपों की तरह फुफकारने तथा बंदर की तरह घुड़की देने की कला को भी पाठ्यक्रम में शामिल करना पड़ेगा। यदि किसी दबंग से पाला पड़े तो उससे निपटने के लिए भी ढंग सोचना पड़ेगा। लगता है प्राइवेट सिक्यूरिटी देने वालों के दिन बहुरने वाले हैं। ..

Saturday 26 October 2013

हैसियत के अनुसार मुआवजा?

आज उस निर्णय की बहुत चर्चा हो रही है जिसके द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल नेग्लिजेंस के मैटर में ६ करोड़ से अधिक का मुवावजा देने का आर्डर दिया है। लेकिन ध्यान से पढने पर पता चलता है कि इसकी अधिकांश राशि उस महिला को जीवन पर्यन्त मिलने वाले वेतन के बदले में दी गयी है। यानि कि डॉक्टर्स को मरीज देखने से पहिले उसकी हैसियत का पता कर लेना होगा। यह भी पता करना होगा कि वह अफ्रीका से आया है कि अमेरिका से। यह वैसे ही है जैसे कि रेल यात्री को १२००० मिलते हैं जब कि हवाई यात्री को ३०००००। अब डॉक्टर्स मांग करेंगे कि कानून बनाकर उनका दायित्व निश्चित कर दिया जाये।  वह महिला यदि भारतीय होती और मनोचिकित्सक ही होती तो शायद इतनी धनराशि की हकदार नहीं होती।  मेडिकल लापरवाही की क्षति निर्धारण के लिए अभी युक्तियुक्त पैमाने की ज़रूरत है। लोगों की हैसियत के अनुसार नहीं बल्कि लापरवाही के अनुसार मुआवजा तय किया जाना चाहिए।