Friday 24 March 2017

गौरय्या संरक्षण : एक उत्तर कथा

तुमसब बुलाते हो मुझे.
संरक्षण के लिए .
बनाते हो 'माडल घर'
खिंचवाते हो फोटो,
दाना-पानी भी रखते हो,
छत पर और मुंडेरों पर--

सच बताना कि
इतने आयोजनों से भी
क्या लौटीं हूँ घर , मैं ?
नहीं , न
कारण जानने की कोशिश तो करो
बाहरी उपचारों से ही ,
कहीं ठीक होती हैं अन्दर की बातें?

झांको तो अन्दर
कंकरीट के घने जंगलों में
साफ़-सुथरी हवा को तरसती
गलियों,चौबारों.
आँगन रहित घरों में ,
अंधेरों की धुंध में -
दम घुटता है मेरा , मनुज पुत्र !

रोशनीके विस्तार को
सकुचा दिया है तुमने
बाट जोहती अब तुम्हारी आँखों में
मेरे लिए कोई नेह निमंत्रण भी तो नहीं है
संवेदनाओं के सूखे घर परिवेश में ,
अखबारी चिंताओं में.
बहुत सारी ऊब ने
मुझे तुम्हारे प्रति उचाट बना दिया है,मेरे साथी !
सभ्यता के तुंग शिखरों पर
बैठी तुम्हारी "गूगल संस्कृति " ने
मेरे प्रति वर्चुअल सरोकार इकट्ठे तो कर लिए हैं ,
पर,
नहीं की वे सच्ची बातें
जिनसे फुदकती हुई मै और मेरी टोली
सहज और निधड़क स्फुरण से
तुम्हारे अस्तित्व में कोई हिस्सा
अन्तरंग छुवन सा महसूसती
और तिनके चिन्ती
फिर
आहिस्ते -से  निर्माण करती
अपने नीड़ का
और क्या तुम नहीं जानते ,
नीड़--भरोसे का, भरोसे से और,
भरोसे के लिए बनाये जाते हैं !
ताकि ,
उन्मुक्त आज़ादी के साथ
हम रह सकें साथ-साथ
आगे तक............
न जाने कितने जन्मों तक