आज उस निर्णय की बहुत चर्चा हो रही है जिसके द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल नेग्लिजेंस के मैटर में ६ करोड़ से अधिक का मुवावजा देने का आर्डर दिया है। लेकिन ध्यान से पढने पर पता चलता है कि इसकी अधिकांश राशि उस महिला को जीवन पर्यन्त मिलने वाले वेतन के बदले में दी गयी है। यानि कि डॉक्टर्स को मरीज देखने से पहिले उसकी हैसियत का पता कर लेना होगा। यह भी पता करना होगा कि वह अफ्रीका से आया है कि अमेरिका से। यह वैसे ही है जैसे कि रेल यात्री को १२००० मिलते हैं जब कि हवाई यात्री को ३०००००। अब डॉक्टर्स मांग करेंगे कि कानून बनाकर उनका दायित्व निश्चित कर दिया जाये। वह महिला यदि भारतीय होती और मनोचिकित्सक ही होती तो शायद इतनी धनराशि की हकदार नहीं होती। मेडिकल लापरवाही की क्षति निर्धारण के लिए अभी युक्तियुक्त पैमाने की ज़रूरत है। लोगों की हैसियत के अनुसार नहीं बल्कि लापरवाही के अनुसार मुआवजा तय किया जाना चाहिए।
बढ़िया शुरुवात सर , कानूनी कठिनाइयों में माथा पच्ची से डरने वाले हमारे जैसे लोग कुछ सीख ही लेंगे . आभार
ReplyDeleteइसी तरज़ पर , मोटर बीमे के थर्ड पार्टी केसों में तो मुआवजा वाकायदा बंटता है इसलिए ऐसे अनापशनाप ऑर्डर तो वहां इस हद तक हो रहे हैं कि कंपनियां एक एक कर बंद होनी शुरू हो जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. हवाई यात्री को तीन लाख. सड़क के किनारे मोटर से मरने वाले को करोड़ों. सरकार में भी सबकी ऑंखों पर पट्टी बंधी है.
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