Saturday, 14 June 2025

नकारात्मक मताधिकार के सांविधानिक पहलू

 नकारात्मक मताधिकार के सांविधानिक पहलू 


गत दिनों एक जनहित याचिका द्वारा उच्चतम न्यायालय से गुजारिश की गई कि वह निर्वाचन आयोग को निर्देश जारी करे कि लोकसभा तथा विधानसभा के चुनावों के मत-पत्र (वोटिंग मशीन)में एक कालम ‘ उपरोक्त में कोई नहीं का भी रखा जाए, जिससे मतदाता यदि किसी भी उल्लिखित उम्मीदवार को उपयुक्त न समझे तो अपने मत को अभिव्यक्त कर सके । उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार तथा निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर उनकी प्रतिक्रिया चाही है तथा यह भी अपेक्षा की है कि जिन देशों में ऐसी प्रणाली प्रचलित है, वहाँ के अनुभवों के विषय में भी जानकारी दी जाए । वर्तमान मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने स्वयं कुछ दिन पूर्व नकारात्मक वोटिंग प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया था । इस प्रणाली को लागू करने के लिए कानून में संशोधन करना होगा, अतः उच्चतम न्यायालय भी केवल अपनी अनुशंसा ही दे सकेगा ।

ज्ञातव्य है कि वर्तमान में प्रचलित मताधिकार प्रणाली के अंतर्गत मत-पत्र (अब वोटिंग मशीन) पर उन उम्मीदवारों के नाम तथा चुनाव चिह्न होते हैं जो उस सीट पर प्रत्याशी होते हैं । मतदाता को उनमें से एक के सामने मोहर लगानी होती है या बटन दबाना होता है ।यदि वह दो या अधिक पर मोहर लगाता है या किसी को वोट नहीं देता है तो उसका मत पत्र अवैध घोषित कर दिया जाता है ।वोटिंग मशीन प्रयुक्त होने के बाद से अवैध वोटों की संख्या में कमी आ गई है ।यदि नकारात्मक मतदान की अनुमति हुई तो मतदाता को लड़ने वाले प्रत्याशियों की अनुपयुक्तता बताने का अवसर मिलेगा तथा यदि बहुमत में ऐसे वोट पड़े तो दुबारा चुनाव प्रक्रिया प्रारंभ करनी पड़ेगी तथा राजनैतिक दलों को नए उम्मीदवार खड़े करने पड़ेंगे । जिन देशों में यह प्रणाली लागू है वहाँ यह भी नियम है कि यदि ‘निगेटिव ‘ वोटों की संख्या जीतने वाले को मिले वोटों से अधिक है, तब भी दुबारा प्रक्रिया प्रारम्भ की जाती है ।इस प्रणाली के लागू होने से राजनैतिक दलों में सतर्कता बढ़ेगी तथा अपनी साख को कायम रखने के लिये साफ़-सुथरी छवि वाले लोगों को टिकट देना अपरिहार्य हो जाएगा ।निश्चित तौर पर यह एक स्वागत योग्य कदम होगा ।

भारतीय संविधान अधिनियमित होने के बाद चौदह आम चुनाव हो चुके हैं तथा देश में बहु-दलीय प्रणाली का प्रजातंत्र है ।प्रारंभ में देश सेवा का व्रत लिए तथा स्वतंत्रता संग्राम के तपे-तपाए नेता राजनीति में थे लेकिन धीरे-धीरे इसमें अपराधी तथा न्यस्त स्वार्थ के तत्वों की घुसपैठ हो गई ।प्रायः सभी दलों में माफिया, भ्रष्टाचारी तथा सार्वजनिक धन-सम्पत्ति पर ऐश करने वाले लोग अपनी पहुँच बना चुके हैं तथा त्यागी,दल की नीतियों में आस्था रखने वाले तथा लोगों को नेतृत्व देने की क्षमता रखने 
वाले हाशिये पर चले गए हैं ।चुनाव हेतु समर्पित कार्यकर्ताओं की बजाय अधिक बोली लगाने वाले लोगों को टिकट दिये जा रहे हैं तथा टिकट वितरण का मुख्य आधार प्रत्याशी की जीतने की क्षमता हो गया है । अभी तक धर्म, जाति,क्षेत्र,भाषा,स्थानीयता आदि के आधार पर वोट मांगे जाते थे,अब बाहुबल तथा धनबल के सहारे चुनावों का प्रबन्धन होता है ।एक सामान्य मतदाता दिग्भ्रमित है तथा “साँपनाथ “ या “नागनाथ “में एक को चुनना उसकी नियति हो चुकी है ।कोई आश्चर्य नहीं कि बहुत से मतदाता सिर्फ़ इसलिए वोट डालने नहीं जाते क्योंकि वे मैदान में लड़ रहे उम्मीदवारों में किसी को भी अपना प्रतिनिधि नहीं चुनना चाहते ।कई बार मत-पत्रों पर संदेश लिखकर अपनी कुंठा और लाचारी का इजहार किया भी जाता है तथा वह मीडिया के द्वारा प्रचारित और प्रसारित होता है लेकिन मत-पत्र तो अवैध हो ही जाता है । नकारात्मक मतदान की अनुमति होने से ऐसी इच्छा को भी वैधानिकता, सम्मान तथा मान्यता प्राप्त होगी ।

संविधान के लागू होने के समय ही सार्वभौमिक बालिग मताधिकार प्रदान करना संविधान निर्माताओं की परिपक्व बुद्धि का परिणाम था ।जनतंत्र का मुख्य आधार सभी नागरिकों का कानून के समक्ष समता का अधिकार होता है ।जनतंत्र अपने शासकों को चुनने के लिए आनुवंशिकता को मान्यता नहीं देता और सम्प्रभु जानता चुनाव द्वारा अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है ।चुनाव जनतंत्र की कुंजी है तथा एक सभ्य राष्ट्र की जागरूकता का प्रतिबिंब है ।पिछले कई आम चुनावों से जो तस्वीर उभर कर आई है वह निराशाजनक है ।वोट डालने के अर्ह लोगो का पंजीकरण नहीं होता तथा बहुधा मतदाताओं के नाम मतदाता सूची में नहीं मिलते ।जिनके नाम होते भी हैं,उनमें आधे लोग मतदान स्थल तक नहीं जाते ।यदि यह मान भी लिया जाए कि चुनाव स्वतंत्र तथा निष्पक्ष होते हैं तथा बूथ कैप्चरिंग,बोगस वोटिंग तथा दूसरों के नाम पर कोई अन्य वोट नहीं डालता, फिर भी जितने वाला अभ्यर्थी पड़े हुए वोटों का अल्पमत ही पाता है ।इसके अलावा मतदाताओं को प्रत्याशी चुनने का अधिकार नहीं होता क्योंकि वे राजनैतिक दलों के द्वारा थोपे जाते हैं ।देश के प्रायः सत्तर करोड़ मतदाताओं में अधिकांश निरक्षर,गरीब तथा वंचित वर्ग के लोग हैं तथा जनतंत्र में अपनी महती स्थिति से अनभिज्ञ हैं ।

भारतीय चुनाव प्रणाली में सुधार की पड़ताल और अनुशंसा के लिए गोस्वामी समिति (1990);इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) तथा हाल में नियुक्त वेंकट चल्लैया आयोग (2000)ने सिफारिशें की हैं जिन्हें अमली जामा पहनाना अभी शेष है ।कई चुनाव आयुक्त भी समय-समय पर सुझाव देते रहते हैं लेकिन स्थिति बद से बदतर होती जा रही है ।आज स्थिति यह आ गई है कि जेल की चहार दिवारी के अंदर से चुनाव लड़े व जीते जा रहे हैं तथा बाहुबलियों के संसदीय क्षेत्र के मतदाता मीडिया के सामने कुछ भी विपरीत बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं ।द्वि-दलीय प्रणाली विकसित करने,पार्टियों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र मजबूत करने तथा अन्यथा कारणों से चुनाव लड़ने वालों पर रोक लगाने के प्रयास बेमानी सिद्ध हो चुके हैं ।चुनाव से आम आदमी का मोह भंग हो चुका है तथा वह इसी स्थिति को अपनी नियति मान बैठा है ।

थोड़े वर्ष पूर्व उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश जारी कर यह आवश्यक कराया था कि चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार अपनी चल-अचल सम्पत्ति,शैक्षिक योग्यता तथा न्यायालयों में अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों का ब्योरा सार्वजनिक करे ।पिछले चुनावों में दी गई सूचनाओं के आधार पर इनकमटैक्स विभाग सक्रिय हुआ है तथा आय एवं सम्पत्ति पर टैक्स आदि के लिए नोटिसें जारी हुई ।कई विधान सभा चुनावों के दौरान उन प्रत्याशियों पर छापे मारे गए जिनके खिलाफ हत्या,अपहरण,डकैती आदि जघन्य अपराध के मामले दर्ज हैं ।

भारतीय जनतंत्र के त्योहार समझे जाने वाले इन चुनावों में हिंसा,धनबल और बाहुबल का नंगा नाच हो रहा है तथा मतदाताओं की उदासीनता बढ़ रही है,ऐसे में नकारात्मक मतदान कितना सहायक होगा,यह अंतिम रूप से नहीं 
कहा जा सकता ।कई बार गांव-मोहल्ले के अति उत्साही मतदाता चेतावनी लिखवाकर टांग देते हैं तथा चुनाव का बहिष्कार करते हैं जिससे प्रत्याशियों को सबक मिले ।लेकिन इसके भी उत्साह जनक परिणाम नहीं आये हैं ।एक स्वस्थ जनतंत्र की स्थापना के लिए नागरिकों की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है ।उन्हें यह विश्वास होना चाहिये कि उनके मतपत्र में व्यवस्था बदल देने की शक्ति है और उनकी सामूहिक शक्ति के आगे अनुचित साधन अपनाने वाले लोग बौने और कमजोर हैं ।दरअसल समय आ गया है कि मतदान अनिवार्य किया जाए तथा जीतने वाले प्रत्याशी के लिए बहुमत पाना अपरिहार्य हो । सभी राजनैतिक दलों को इस के लिए सहमत होना पड़ेगा ।जब तक मतदान का प्रतिशत नहीं बढ़ता,नकारात्मक मतदान केवल कुछ की इच्छा की अभिव्यक्ति बन कर रह जाएगा तथा बेअसर साबित होगा ।








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