Friday, 18 March 2016
Thursday, 17 March 2016
राष्ट्रीय चरित्र की पहचान
भारत माता की जय न बोलने पर एक विधायक सदन से सस्पेंड कर दिया गया। इसके पहले इन्ही की पार्टी के नेता ने कहा था कि उनके गर्दन पर चाकू रख दिया जाये फिर भी वे जय नहीं बोलेंगे। इस पर तीव्र और तीखी प्रतिक्रिया हुई है। किसीने ने जीभ काटने पर इनाम घोषित किया तो किसीने सर कलम कर लाने पर। सुकरात की वह प्रतिक्रिया याद आ रही है की इनको मालूम ही नहीं है की इनका गुनाह क्या है।
राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्र -गान तथा राष्ट्रीय गीत को लेकर पूर्व में भी ऊल जुलूल हरकतें हुईं हैं। 1969 में तामिलनाडु के एक नेता ने राज्य हेतु अलग झण्डे तथा राज्य - गान की अनुमति चाही थी. तब इंदिरा जी ने राष्ट्रीय ध्वज के अलावा , सेना के ध्वजों को छोड़ कर,बाकी सभी के प्रयोग पर रोक लगा दी थी। अब सरकारी भवनों तथा राज - भवनो आदि पर सिर्फ और सिर्फ तिरंगा फहराया जाता है।
तथाकथित खालिस्तान के समर्थक इंडियन कॉन्स्टिटूशन की खुले आम होली जला रहे थे। संविधान तथा लोक प्रतिनिधित्व विधि में संशोधन करके यह अनिवार्य किया गया कि विधायिकी या संसद सदस्यता हेतु इलेक्शन लड़ने वाला प्रत्येक अभ्यर्थी अपना नामांकन कराने से पूर्व संविधान के प्रति निष्ठां की शपथ लेगा। फांसी पर चढ़ाये गए इन्दिरा जी के हत्यारे की पत्नी एम पी का चुनाव जीत गई थी लेकिन सदस्यता से पूर्व भारतीय संविधान के प्रति निष्ठां व्यक्त करने वाली शपथ को लेने से इंकार करने के कारण वे सदन की औपचारिक सदस्या कभी नहीं बन पाईं। इसी के कारण संविधान में संशोधन किया गया था।
सन 1962 के भारत - चीन युद्ध के बाद देशवासियों में राष्ट्रीय चेतना जाग्रत कराने के लिए शिक्षण संस्थाओं तथा सिनेमा घरों में जन गण मन का गायन अनिवार्य किया गया था। तब से लेकर आज तक यह परम्परा निभाई जा रही है लेकिन गायन के मध्य सावधान न रहने के कई वीडिओ यदा कदा वायरल होते रहते हैं। 15 अगस्त तथा 26 जनवरी ऐसे राष्ट्रीय उत्सवों पर उल्टा राष्ट्र ध्वज फहराने के समाचार प्रसारित हुए हैं। थोड़े दिन पूर्व एक पत्रकार ने कई उच्च पदस्थ अधिकारियों तथा टीचर्स के इंटरव्यू प्रसारित किये थे जिसमें उन्हें राष्ट्र गान सुनाना था। लेकिन कई अधिकारी और शिक्षक हंसी का पात्र बने थे।
यहाँ विजय इमैनुएल बनाम केरल राज्य के वाद का जिक्र समीचीन होगा जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार होने के कारण किसी को राष्ट्र गान गाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता है। यूनाइटेड स्टेट्स में तो राष्ट्रीय ध्वज को जलाना भी वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा माना जाता है।
भारतीय वाङ्गमय में ध्वज का ऐतिहासिक महत्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अश्वमेध यज्ञ करके अपने घोड़े को ध्वज के साथ छोड़ा था ,तथा उसमे भाव यह था कि जो हमारी अधीनता स्वीकार ना करे , उन्हें युद्ध होगा। उसी झण्डे को चुनौती देने के कारण लव कुश पहचाने गए थे। इंग्लैंड में भी झंडे को वही स्थान प्राप्त है जो भारत में है।
नवीन जिंदल बनाम भारत संघ के वाद में सुप्रीम कोर्ट ने अभिनिर्धारित किया था कि तिरंगा फहराना प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार है लेकिन इसकी आन -बान -शान की रक्षा की जानी चाहिए। कई बार अति उत्साह में तिरंगे के उपयोग को लेकर प्रश्न किये गए हैं तथा कोर्ट ने फ्लैग कोड जारी करने के आदेश दिए हैं। इसके अनुसार तिरंगे ऐसे कपड़ों को कटिप्रदेश से नीचे नहीं पहना जा सकता है।
तिरंगा या जन गण मन हमारी राष्ट्रीय अस्मिता का द्योतक हो सकता है लेकिन राष्ट्रीयता सिर्फ इनके प्रति सम्मान दिखाने मात्र से नहीं आ सकती। विद्यालयों में 'वन्दे मातरम'का गायन भी विरोध झेल चुका है। आपको याद होगा कि ए आर रहमान का 'मां तुझे सलाम 'इसी की प्रतिक्रिया में कंपोज़ किया गया था।
राष्ट्र भक्त जावेद अख्तर ने संसद में अपने अंतिम दिन भारत माता की जय का जयकारा कई बार लगाया लेकिन यह भी कहा कि भारत माँ की जय कहना हमारा दायित्व नहीं बल्कि हमारा अधिकार है। उनकी भावना का सम्मान है लेकिन हमारे सर्वोच्च धर्मग्रन्थ के मौलिक कर्तव्यों में संविधान का पालन करना , उसके आदर्शों , संस्थाओं , राष्ट्र ध्वज तथा राष्ट्र गान का आदर करना अभीष्ट है।
दरअसल , भारतमाता के नाम पर ओछी राजनीति करने वालों पर गुस्सा या रोष नहीं बल्कि उनका तिरस्कार करना होगा। उनकी बातों का संज्ञान लेकर प्रतिक्रिया करने पर उनका महिमा मंडन होता है तथा इन्ही कारणों से उनके फॉलोवर बढ़ते हैं। एक जिम्मेदार मीडिआ तथा नागरिकों को यह मर्म समझना ही नहीं बल्कि उस पर कार्य भी करना होगा।
Tuesday, 1 March 2016
A well come move..
Its a welcome move that the SC has admitted a SLP that seeks the setting up of a National Court of Appeal to hear routine appeals in civil and criminal matters from the HCs.
The Law Commission of India in its 229th Report (2009) had suggested that
Cassation Benches may be set up in four regions, while the Constitution Bench
sits in Delhi. Cassation are courts of last resort to reverse decisions of
lower courts. Art. 130 of the Constitution provides that the SC shall sit in Delhi
or in such other place/places, as the CJI may , with the approval of the
President, from time to time , appoint. The time is ripe to amend article 130
to enable the creation of such Benches in the four corners of the country. The
SC may remain stationed at Delhi and be allowed jurisdictions provided under
Arts. 32( enforcement of fundamental rights), 131 ( original jurisdiction
relating to disputes between union and state/s ), 132 (where interpretation of
Constitution is involved ), 136( special leave to appeal )and 143 ( advisory
jurisdiction ). Suitable amendments may be required to adjust the jurisdiction
of HCs.
The creation of four
circuit courts would not only lessen the burden of SC to a considerable extent
and the Constitution Bench will have sufficient time to devote its energy on
burning constitutional questions. This will serve another important purpose.
Now it will be possible to dispense justice in regional languages also. Right
now article 348 says that the language to be used in the SC/HCs shall be
English. It permits the use of Hindi and regional languages in HCs but at the
same place provides that this will not apply to any judgement, decree or order
passed or made by such HC.
There have been demands
from lawyers that they be permitted to practice in their own language. Recently
some unpleasant events were reported from TamilNadu , where advocates were
demanding that they be allowed to plead in Tamil.So far SC as well as Law
Commission have not favored this idea for the sake of uniformity and certainty.
In circuit courts advocates can be permitted to practice in their own mother tongues. It will be a great day for India and a fitting tribute ti International Mother Tongue Day.
In circuit courts advocates can be permitted to practice in their own mother tongues. It will be a great day for India and a fitting tribute ti International Mother Tongue Day.
It is also high time that the Constitutional mandate of creating All India Judicial Services ( Art.312 ) is also given effect to.The all India test for recruitment of AIJS can be conducted on the lines of IAS ( in different languages as permitted in the Constitution ) and any body having knowledge. skill, expertise, acumen and merit will have chance to be elevated to apex positions.
It is also high time that universities imparting legal education should deliberate on such contemporary issue by organizing seminars/workshops. The Faculty of Law , University of Allahabad has already taken a lead in this direction by organizing a two-day national seminar on the topic VIDHI TATHA NYAYA VYAVASTHA MEIN BHARTIYA BHASHAYEIN.
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